Xxx Family Sex Kahani – मम्मी ने मेरी बहन के यार को बुलाया


Xxx फॅमिली सेक्स कहानी में पढ़ें कि मेरी मम्मी को मेरी दीदी के यार के बड़े लंड के बारे में पता लगा तो वो भी उसके बड़े लंड का मजा लेने को आतुर हो गयी.

अपनी वासना की आत्मकथा कहने के लिए ये अन्तर्वासना का प्लेटफॉर्म बहुत उपयुक्त है।

मैंने Xxx फॅमिली सेक्स कहानी के पिछले भागों में आप सबको बताया कि कैसे मेरी दीदी ने अपनी बुर-गांड चुदाने में मेरी गांड मरवा दी अपने यार के बड़े लंड से!

तब से अब तक चालीस सालों में बहुतों ने मेरी गांड मारी लेकिन वैसा लंड आज तक नहीं मिला, सिर्फ ब्लू फिल्म में अफ्रीकी लंड ही वैसे दीखते हैं।

ये कहानी नहीं, मेरी आत्मकथा है वासना की जिसे किसी से साझा नहीं किया जा सकता।

यहां पर लिख रहा हूं अपनी संतुष्टि के लिए, इतनी झूठी-सच्ची कहानियां पढ़ी यहां अन्तर्वासना पर कि मुझे भी अपना बीता समय बताना उचित लगा.
कम से कम कुछ लोगों को पता तो चलेगा कि कैसे आपसी संबंधों में वासना घर कर लेती है सिर्फ चुदाई के लिए और मेरे साथ बीता सच मनोरंजन भी करेगा।

चलिए पिछले भाग
मम्मी ने दीदी को चुदवा दिया
से आगे की आगे की Xxx फॅमिली सेक्स कहानी बताता हूं।

मम्मी मेरे पास रजाई में आकर सो गई और मैं भी सो गया।
मैं जागा और उठने लगा.
तो मम्मी ने मुझे फिर लिटा लिया और बोली- रुक ना, मैं भी उठती हूं।

मैं बोला- मम्मी पेशाब लगा है, आता हूं करके। दीदी अभी तक मालिश करा ही रही है! तुम यहां सो रही हो?”
“ठीक है चलो, मैं भी चलती हूं।”

मम्मी बरामदे में रुकी, मैं आंगन पार करने लगा तो मम्मी अपने कमरे में घुस गई और बोली- बहुत हो गया, चलो बाहर अब तुम लोग! बाबू उठ गया है और पापा भी आ सकते हैं।

पेशाब करके मैं लौटा तो देखा अंकल ऊपर से नंगे थे और लुंगी लपेटते हुए बाहर जा रहे थे, मम्मी उनके पीछे-पीछे थी।

मैं मम्मी के कमरे में घुस गया, देखा दीदी ऊपर का समीज पहन ली थी और उसके हाथ में सलवार थी।
बिस्तर जगह जगह से गीला था।

दीदी ने दूसरे हाथ से बिस्तर की चादर उठाई और कमरे से बाहर निकलने लगी।
बस मुझे देख कर मुस्कुरा दी और बोली- तुम सो लिए, अब मैं सोऊंगी।

उधर से मम्मी बाहर का दरवाजा बंद करके आ रही थी, बरामदे में मम्मी और दीदी आमने-सामने हुईं तो मम्मी ने कहा- सलवार तो पहन ले, गंदी हो गई क्या? ला मुझे दे।
और मम्मी हंसने लगी- चल मैं भी सोऊंगी अभी तेरे साथ!

दीदी ने सलवार मम्मी को पकड़ा दी और अपने बिस्तर पर रजाई में घुस गई।

मम्मी सलवार को बाथरूम में रख आई और दीदी के कमरे में घुसते हुए बोली- बाबू, बाहर वाले रूम में पढ़ाई करो। बाहर नहीं जाना। मैं प्रभा के साथ थोड़ी देर सोऊंगी।

मैं किताब लेकर बाहर वाले कमरे में आ गया।

मेरा मन तो पढ़ाई में लग ही नहीं रहा था।
मेरे दिमाग में तो सिर्फ चुदाई भर चुकी थी, मैं सोच रहा था कि उमेश और धीरज गन्ने के खेत पर आकर लौट गए होंगे. दीदी तो सुबह से घर में ही चुदवा रही थी, मैं भी नहीं जा पाया। अभी जरूर मम्मी दीदी से चुदाई की बातें कर रही होंगी, आखिर मम्मी भी चुदाई का खूब मज़ा लेती थी पापा और अंकल के साथ और उमेश के बड़े लंड के बारे में जानकार उसे घर लाने बोली थी दीदी को! आज सुबह सुबह मम्मी ने दीदी को अपने सामने अंकल से चुदवाया, फिर खुद चुदी। अगर मैं बड़ा होता तो शायद मुझे भी ग्रुप में शामिल कर लिया जाता!
यहीं सब आ रहा था दिमाग में।

थोड़ी देर बाद मैं दबे पैर उनके कमरे के दरवाजे के पास चला गया और ध्यान से कान लगाकर उनकी बातें सुनने की कोशिश करने लगा।
मम्मी बोल रही थी- ज्यादा मत चुदा! अभी से ऐसी चालू हो गई तू! देखना जरूर बोलेगा वो तेरा दोस्त तेरे को अपने किसी दोस्त से चुदवाने को! बिल्कुल मत करना। उसको घर पर ही बुला, मैं भी उसके बड़े लंड से मज़ा लूंगी। और अंकल तो हैं ही, जब मन करे तब चुदा लेना पापा और बाबू से छुप कर!

फिर दीदी की आवाज़ आई- मम्मी, दोनों छेद में एक साथ करने से तो दर्द होता होगा ना? तुम तो हमेशा ऐसे ही करती हो।

“वाह रे लड़की! अब दोनों छेद में तुमको लंड चाहिए? कुछ ज्यादा दर्द नहीं होगा। और मज़ा लेना है तो थोड़ा सा बर्दाश्त करना ही पड़ता है। जब पहली बार गांड मरवाई तो कैसा लगा था? बुर फटी तो कैसा लगा? अब तो कुछ फटना बाकी नहीं है तो दर्द होगा कितना? लेकिन देख घर से बाहर बिल्कुल मत करना ये सब, लोगों में बात फैलेगी तो दो का चार लगा कर बदनाम कर देंगे।” मम्मी ने दीदी को समझाया।

“अब नहीं करूंगी मम्मी बाहर! ठीक बोल रही हो। लेकिन उमेश को तो रोज चाहिए, एक दिन नहीं मिलता है तो अगले दिन जानवर बन जाता है। चूतड़ पर और गाल पर चांटा मारता है।”
“तुम दोनों की उम्र तो ऐसी है कि रोज क्या, दिन-रात यही चाहिए। सुबह शाम खेत में ही करती है या स्कूल से भी भागती है?”

दीदी ने जबाव दिया- चार-पांच बार भागी हूं स्कूल से टिफिन के बाद नदी किनारे। वहां कोई नहीं रहता है।
“यहीं करो … पढ़ने जाती है या गांड मराने? फ्री में सब दे दिया तूने तो! मुझे बता देती पहले तो उसको फ्री में थोड़ी मिलता। मर्द लोग तो बुर चोदने के लिए बहुत कुछ लुटा देते हैं। आज तो तुम गई नहीं उससे चुदाने, अब जाना भी नहीं कहीं। कल स्कूल से छुट्टी होगी तो उसको साथ लेकर आना। मैं सब सेट कर दूंगी। समझी?” मम्मी बोली।

तभी दर्द से चिल्ला पड़ी दीदी- आह, बाप रे … छोड़ न मम्मी, ऐसे मत कर। अब वैसे ही करुंगी जैसे तुम कहोगी। ऐसे काटेगी तो घाव हो जाएगा।
मम्मी ने कहीं काट लिया था दीदी को! मम्मी दीदी को सजा भी दे रही थी और मज़ा भी।

तभी मम्मी ने पूछा- अभी आएगा शाम को वो खेत में?
“वो तो दस बजे ही अपने दोस्त के घर ले जाने वाला था, पता नहीं शाम को आएगा या नहीं!” दीदी बोली।

तब मम्मी ने कहा- अपने दोस्त से भी चुदवाता तुझे? उसको पता कैसे चलता है कि तू खेत में जा रही है या खेत के पास ही बैठा रहता है?
“हां, वो कहीं बैठ कर देखते रहता है। जैसे ही मैं खेत में घुसती हूं वो आ जाता है।” दीदी बोली.

तब मम्मी ने पूछा- जाएगी क्या? जाएगी तो जा और उसे घर लेकर आ … बात कर लूंगी मैं!
“अभी तो चलने का मन भी नहीं कर रहा मम्मी! अंकल ने बहुत चोदा है आज … कल बुला कर ले आऊंगी। सोने दो मुझे, नींद आ रही है।” दीदी बोली.

तो मैं धीरे से बाहर वाले कमरे में आ गया।
सोचा कि मैं ही बुला लाता हूं उमेश को … और फिर अपने रूम में गया।

मम्मी और दीदी रजाई में थी और दोनो के चेहरे आमने-सामने थे।
दोनों ने मेरी तरफ देखा।

मैंने कहा- मम्मी मैं खेलने जा रहा हूं, दरवाजा बंद कर लो।
मम्मी बोली- खाली खेल पर ही ध्यान रहता है, रुक जा भात खाकर जा, दो बज गए, खाएगा कब? चलो खाते हैं पहले … फिर जाकर जल्दी आ जाना। अंधेरा करेगा तो बहुत मारूंगी।
और रजाई से निकल आई।

मैंने कहा- दे खाना।
मम्मी थाली में दाल-भात दी।

फिर और एक थाली में खाना लाई और दीदी को बिस्तर पर ही देकर बोली- खा कर सो!

मैंने खाना खाकर बाहर का दरवाजा खोला और निकल पड़ा गांव की तरफ!
मुझे पता था कि गांव के दूसरी तरफ बड़े छोटे सभी लड़के खेलते रहते थे। मैं वहां जाता रहता था। उमेश वहां मिल जाता था कभी कभी!

जब मैं पहुंचा तो देखा क्रिकेट चल रहा है बड़े लड़कों का और मेरे जैसे कई छोटे लड़के देख रहे हैं।
उमेश भी खेल रहा था।

जब उमेश ने मुझे देखा तो खेल छोड़ कर मेरे पास आ गया और मुझे साथ लेकर गांव की तरफ चल पड़ा।

रास्ते में उमेश ने पूछा- तुम लोग आज आए नहीं दस बजे! क्या हुआ था?
मैंने कहा- बहुत कुछ हुआ। तुझे करना है तो जल्दी से गुड़ का रावा लेकर आ जा मेरे घर! ये मत बोलना कि मैंने बुलाया था तुमको!

“कुछ बताएगा? घर में कैसे होगा?” उमेश ने फिर पूछा।
“तू आ ना पहले घर … सब समझ जाएगा वहीं। मैं जा रहा हूं, जल्दी आना। फिर पापा आ जायेंगे शाम को कभी भी।” मैं बोला और चल दिया।

घर पहुंचकर देखा तो दरवाजा खुला था, सिपाही अंकल बाहर वाले कमरे में ही खा रहे थे और मम्मी वहीं बैठी थी।

मेरे पहुंचते ही मम्मी पूछी- बड़ी जल्दी आ गया! तुझे खिलाया नहीं लड़कों ने?
“नहीं मम्मी, बड़े बड़े भैया लोग क्रिकेट खेल रहे थे तो मैं आ गया। मेरे दोस्त लोग थे ही नहीं वहां!” मैं बोला.
तो मम्मी बोली- सब तेरी तरह दिन भर थोड़े न खेलते हैं। अच्छा हुआ। चल दीदी के पास जा, पढ़ वहीं बैठकर!

तभी अंकल बोले- आज बाबू को साथ में बाजार ले जाता हूं। क्या क्या लाना है बता दीजिए। कुछ मिठाई लेकर आऊंगा। और थोड़ा सा भात है तो दीजिए, आज भूख कुछ ज्यादा है।
मम्मी बोली- मेहनत करोगे तो भूख तो लगेगी ही! लाती हूं।
और हंसती हुई उठ गई।

उधर से मम्मी भात के साथ बड़े कटोरे में दूध भी लाई और बोली- दूध भी पी लो। अब दोनों टाईम दूध पियो। तब न मां बेटी की मालिश करोगे ठीक से!
अंकल मुस्कुराने लगे, बोले- प्रभा नींद से सोई है क्या?

मम्मी बोली- और क्या! मालिश के बाद नींद आती ही है। सोने दो। तुम बाबू को लेकर बाजार जाओ। साहब तो आयेंगे नहीं आज … तो रात को तो फिर यहीं सोना है तुमको!
“हां, साहब खबर भेजे हैं कि अभी काम नहीं हुआ। कल भी आने का पक्का नहीं है। अंकल बोले.

तो मैं मन ही मन बड़ा खुश हुआ कि रात को फिर खूब चुदाएगी मम्मी और दीदी और मैं देखूंगा।
अंकल भात खाकर दूध पीने लगे।

अभी अंकल हाथ धो ही रहे थे कि उमेश छोटी बाल्टी में गुड़ का रावा लेकर आया और दरवाजा पर खड़ा हो गया।
अंकल ने खड़े होकर पूछा- क्या है? रावा कौन भेजा है? नाम क्या है तेरा? कहां घर है और तेरे बाप का नाम क्या है?

मम्मी बोली- धीरे धीरे … सिपाही जी! पूरे सिपाही बन जाते हो। क्या है भई बताओ आराम से!

उमेश हकला कर डर डर कर बोला- जी, वो प्रभा मुझे जानती है, उसी के साथ पढ़ता हूं। इसी गांव का हूं। ये रावा तो घर का है, बाबू के लिए लाया हूं। आप लोग भी खाइए।
सिपाही अंकल ने उमेश का हाथ पकड़ लिया था।

मम्मी बोली- अच्छा तो तुम हो। प्रभा ने तुम्हारे बारे में बताया है मुझे! नहीं मिली तो यहां आ गये! डर नहीं लगता? बाहर क्यों मिलते हो उससे, यहां घर पर ही आ जाया करो। आओ, अंदर आओ। लाओ ये बाल्टी अंदर रख दो। सिपाही जी छोड़िए, चोर थोड़ी न है ये!

अंकल ने उमेश का हाथ छोड़ दिया और उमेश मम्मी के पीछे पीछे घर के अंदर चला गया।

अब अंकल बोले- बाबू, यहीं पर रहना। अभी आता हूं।
और अंकल भी अंदर चले गए।

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