मेरी प्यारी भाभी और मेरी प्यासी बहन – 1

मेरा नाम विजय है पर घर में मुझे सब विजू कहते हैं। मैं 20 साल का एक बहुत ही आकर्षक लड़का हूँ। मेरी यह कहानी करीब 1 साल पहले की है, तब मैं पढ़ता था। यह मेरी पहली और सच्ची कहानी है जो मैं आप लोगों से बताने जा रहा हूँ। मैं अपने परिवार के बारे में बता दूँ, जिसमें उस वक्त छह सदस्य थे। हम 3 भाई, एक बहन, एक भाभी और मम्मी। जब मैं छह साल का था पापा का देहांत तभी हो गया था। भाइयों में मैं सबसे छोटा था और बहन मुझसे 1 साल छोटी थी।

बड़े भाई की शादी हो चुकी थी, नई-नई भाभी घर में आई थीं, सब मज़े से चल रहा था। मैं और मेरी बहन सुषमा काफ़ी खुश थे क्योंकि भाभी हम दोनों को बहुत प्यार करती थीं। हम सब खूब मस्ती करते थे। गर्मी की छुट्टियाँ चल रही थीं। एक दिन मैं अकेला ही भाभी के कमरे में भाभी के साथ लूडो खेल रहा था। सुषमा माँ के साथ बाजार गई थी, हम दोनों घर पर अकेले थे। अचानक भाभी ने हँसी-मजाक में मुझे पीछे की ओर हल्का सा धक्का दे दिया।

मैं सम्भल नहीं पाया और पीठ के बल उनके पलंग पर लेट गया। क्योंकि हम उनके ही पलंग पर खेल रहे थे.. मुझे गुस्सा आ गया… मैं उठा और उन्हें पीछे की ओर धक्का देने लगा। भाभी मुझसे ज़्यादा मज़बूत थीं.. मैं उन्हें नहीं गिरा पा रहा था। भाभी को गिराने की कोशिश में मेरे दोनों हाथ उनके कंधे से फिसल कर उनकी चूचियों पर आ गए थे।

धक्का देने के लिए मैं उन्हें उसी अवस्था में धकेल रहा था.. जिससे उनकी चूचियाँ दब रही थीं। मेरे कंधे को दोनों हाथों से पकड़ कर भाभी ने मुझे पीछे धकेल दिया। मैं फिर गिर पड़ा लेकिन मैं भी हार नहीं मानने वाला था.. मैं उठा और इस बार मैंने भाभी को बाँहों में भर लिया और उन्हें गिराने की कोशिश करने लगा। इस बार मैं कामयाब भी हो गया। वो पीठ के बल पलंग पर गिर गईं। भाभी के दोनों हाथ व मेरी बाँहों में क़ैद थे। वो छटपटाने लगीं.. मैं भाभी के ऊपर लेटा हुआ था, तभी मैंने अपने पैरों से भाभी के पैरों को पकड़ लिया। अब उनके दोनों पैर भी मेरे पैरों के बीच क़ैद हो गए थे। उनकी चूचियाँ मेरे सीने से दबी हुई थीं…

वो अब भी ताक़त लगा रही थीं।

मैंने उन्हें कस कर पकड़े हुआ था, तभी भाभी ने अपने दोनों हाथों को मेरी पकड़ से आज़ाद कर लिया। अब उनके हाथ मेरे कन्धे के ऊपर से होते हुए मेरे पीठ पर थे और वो भी अब मेरे सिर को पीछे से पकड़ कर अपनी चूचियों पर दबाने लगीं। मेरा चेहरा उनकी दोनों चूचियों के बीच में दब रहा था। मुझे लगा जैसे मेरा दम घुट जाएगा.. इस बार मैं उनकी पकड़ से छूटने के लिए छटपटाने लगा.. जब नहीं छूट पाया तो मैं चिल्लाने लगा। इससे घबरा कर भाभी ने मुझे छोड़ दिया।

मैं उठ कर खड़ा हो गया और लंबी-लंबी सांस लेने लगा। भाभी मुझे देख कर मुस्कुरा रही थीं.. जबकि मुझे गुस्सा आ रहा था। मैं गुस्से से उन्हें घूर रहा था और वो मुस्कुराते हुए उठ कर बाथरूम में घुस गईं। दोपहर का वक्त था.. बाहर तेज़ धूप थी। मैं जाकर टीवी देखने लगा। कुछ देर में ही माँ और सुषमा भी बाजार से आ गईं। फिर सबने मिल कर खाना खाया। माँ खाना खाकर अपने कमरे में आराम करने के लिए चली गईं। मैं भी अपने कमरे में जाकर आराम करने लगा। तभी सुषमा आ गई और कहने लगी- भाभी ने तुझे बुलाया है। मैं सुषमा के साथ भाभी के कमरे में पहुँचा तो देखा कि भाभी सिर्फ़ ब्लाउज और पेटीकोट पहने पलंग पर लेटी थीं। हालांकि यह कोई नई बात नहीं थी कि भाभी मेरे सामने इस रूप में थीं। कभी-कभी तो वो मेरे सामने कपड़े भी बदल लेती थीं.. क्योंकि मुझे उस वक्त सेक्स का कोई ज्ञान नहीं था।

कहानी जारी है …. आगे की कहानी पढने के लिए निचे दिए गए page 2 pr jaye

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