इस तरह चुदवाना अच्छा लगता

प्रेषक: कैलाश

नताशा और मै एक कंपनी में साथ ही काम करते है पर हमारे डिपार्टमेंट अलग अलग है. मै सेल्स डिपार्टमेंट मे काम करता हूँ और नताशा डिस्पैच डिपार्टमेंट मे काम करती है इसलिए हमारा मिलना अक्सर होता रहता है.

हमारी काफ़ी गहरी दोस्ती हो गयी थी और हम ऑफीस के बाहर भी मिलने लग गये थे. जब भी हम ऑफीस मे मिलते और हमारे आस पास कोई नही होता था नताशा बड़ी शरारती मुस्कान के साथ मुझे चिढ़ा देती. उसकी वो मुस्कान एक ही झटके मे मेरे लंड को खड़ा कर देती.

वो अक्सर मेरी पॅंट में छुपे मेरे खड़े लंड को देखती और अपनी ज़ुबान बाहर निकाल चिढ़ा देती. और कई बार में अपनी ज़ुबान अपने मुँह मे अंदर बाहर कर उसे चिढ़ा देता जैसे में सच में उसकी चूत चाट रहा हूँ. उसका चेहरा शर्म से लाल हो जाता था और बाद में वो मुझे बताती, “कैलाशडार्लिंग जब तुम अपनी ज़ुबान इस तरह हिलाते हो ना तो मेरी चूत गीली हो जाती है. ” एक दिन उसने ऑफीस के इंटरकम सिस्टम पर मुझे फोन किया और बताया कि उसका बॉस उसे काम से बाहर भेज रहा है.

देल्ही के एक सप्लाइयर ने अड्वान्स ले लिया है और माल सप्लाइ नही किया जिससे ऑर्डर पूरा करने में तकलीफ़ हो रही है. उसने मुझसे पूछा कि क्या में भी उसके साथ देल्ही चल सकता हूँ जिससे हम साथ रह सके. मेने उसके जाने की और आने के डेट्स पूछी जो उसने मुझे बता दी. मेरे भी देल्ही मे कुछ ग्राहक थे जिनसे में कई दिनो से नही मिला था. उनके ऑर्डर आते रहते थे पर इतने ज़्यादा नही आते थे जिस तरह पहले आते थे. मेने अपने बॉस को सलाह दी कि क्यों ना में देल्ही जाकर उनसे मिल आऊ और अगर उन्हे कोई शिकायत है तो में उन्हे दूर कर दूँगा. मेरी बात मानकर मेरे बॉस ने मुझे जाने की अग्या दे दी.

फिर भी हमें प्रोग्राम इस तरह सेट करना था कि किसी को ऑफीस मे पता ना चले. कंपनी के रूल के हिसाब से नताशा सिर्फ़ 1स्ट्रीट क्लास या 2- टीर ए.सी से ही सफ़र कर सकती थी, जबकि में प्लेन से भी सफ़र कर सकता था या राजधानी एक्सप्रेस में 1स्ट्रीट ए.सी से भी. मेने नताशा को सलाह दी कि वो ऑफीस के ट्रॅवेल के एजेंट से टिकेट बुक कराए और अपने बॉस को बता दे कि देल्ही मे वो अपने रिश्तेदार के यहाँ रुकेगी. जब नताशा की टिकेट आ गयी तो उसने वो टिकेट मुझे दे दी. में तुरंत रेलवे स्टेशन गया और वो टिकेट कॅन्सल करा दी और राजधानी एक्सप्रेस की 1स्ट्रीट क्लास एरकॉनडिशंड कूप (दो सीट वाला) की बुक करा ली.

फिर देल्ही में अपने एजेंट को फोन कर एक होटेल में डबल रूम बुक करा लिया. ट्रेन दोपहर में 4.30 बजे छूटती थी. पूरा हफ़्ता हमारा तय्यरी और ख़ुसी में गुज़रा. दोनो जन आने वाले दिनो का मज़ा और सफ़र के सपने देखने लगे. हम दोनो ने तय किया था कि हम अलग अलग ही रेलवे स्टेशन पहुँचेगे. मेने रेलवे स्टेशन ठीक 4.10 मिनिट पर पहुँच गया और अपना कूप देख कुली को अपना समान सीट के नीचे रखने को कह दिया. फिर दरवाज़े पर खड़ा हो में अपनी नताशा की राह देखने लगा. थोड़ी देर मे मुझे नताशा अपने कंधे पर एक बॅग और हाथ में एक सूटकेस लिए आती दिखाई दी. मेने हाथ हिला कर उसे बताया तो जवाब में उसने भी हाथ हिला दिया.

में उसे लेकर कूप मे आ गया. हम दोनो एक दूसरे को बाहों में भरकर चूमना चाहते थे पर गालों पर एक हल्की सी चूमि ली और सीट पर बैठ गये. हम टिकेट चेक होने का इंतेज़ार करने लगे. नताशा मेरे बगल में सीट पर बैठ गयी और कूप की सुंदरता आश्चर्य भरी नज़रों से देखने लगी. वो पहली बार 1स्ट्रीट ए.सी में ट्रॅवेल कर रही थी. “क्या एक बार ट्रेन चलने के बाद यहाँ पूरा एकांत होगा, हमे कोई डिस्टर्ब तो नही करेगा ना?” उसने पूछा. मेने अपना हाथ उसकी कामुक टॅंगो पर रख सहलाने लगा, “मेरी जान मेरे साथ जा रही है इसलिए उसके लिए सबसे बढ़िया इंतेज़ाम होना चाहिए था, और मैं इससे कम का तो सोच ही नही सकता था.

आख़िर मेरी जान नताशा भी तो दुनिया में न, 1 है मेरे लिए.” मेरे छूने भर से ही उसके शरीर में सिरहन सी दौड़ गयी और उसका शरीर कांप उठा, “क्या ठंड लग रही है ?” मेने पूछा. “नही बस आपके छूने भर से ही मुझे कुछ कुछ होने लगता है.” उसने जवाब दिया. थोड़ी ही देर में कंडक्टर आया और हमारी टिकेट्स चेक की और हमे शुभ यात्रा कह चला गया. थोड़ी देर बाद ट्रेन चल पड़ी. मेने कूप का दरवाज़ा बंद किया और अपने बाहें फैला दी. मेरा इशारा स्मझ नताशा दौड़ कर मेरी बाहों मे आ गयी. में उसे बाहों में भर उसे चूमने लगा, कभी होठों पर उसेक माथे पर, उसके गालों पर उसकी गर्दन पर. अब हमारी जीब एक दूसरे के मुँह में खिलवाड़ कर रही थी और मेरे हाथ नताशा की पीठ पर रैंग रहे थे. उसके भी हाथ मेरी पीठ को सहला रहे थे, भींच रहे थे. मेने अपने हाथ उसके चुतताड पर फिराए तो चौक्क गया, उसने अंदर कोई पॅंटी नही पहन रखी थी. नताशा और मुझे सॅट गयी जिससे उसकी चूत और मेरे लंड की दूरी कम हो गयी थी. मेरा खड़ा लंड पॅंट के उपर से उसकी चूत पर ठोकर मारने लगा. “मुझे थोड़ा फ्रेश होना है.” नताशा बोली, “में अभी आई.” कहकर वो रेलवे द्वारा दिए गये टवल को उठा बाथरूम की ओर बढ़ गयी. उसके जाते ही मेने अपने कपड़े उतारे और एक नाइट सूट पहन लिया. नताशा करीब 10 मिनिट बाद आई, “लो में फ्रेश होकर आ गयी हूँ.” उसने दरवाज़ा लॉक करते हुए कहा. “क्या पिछले हफ्ते तुम मेरे बारे में सोचते थे.”

कहानी जारी है……… आगे की कहानी पढने के लिए निचे दिए गए पेज नंबर पर क्लिक करे …..part 2 padhe

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *