इस तरह चुदवाना अच्छा लगता – 2

“हर वक़्त हर पल, तुम्हे भूलना इतना आसान तो नही है.” मेने जवाब दिया. “मुझे खुशी हुई ये बात सुनकर.” उसने कहा “कैलाशचलो आज हम एक खेल खेलते है. खेल का नाम है दिखाओ और बताओ. तुम मुझे बताओ कि तुम क्या देखना चाहतो हो और में तुम्हे वो दिखा दूँगी. फिर में तुम्हे बताउन्गि कि मुझे क्या देखना है और तुम मुझे दिखा देना.” “और ये खेला कैसे जायगा?” मेने पूछा. “इस खेल के नियम ऐसे है. पहला एक तुम वो ही चीज़ देखने की माँग कर सकते हो जिससे शरीर का सिर्फ़ एक कपड़ा उतारना पड़े. दूसरा तुम कपड़े उतारने की माँग नही कर सकते. ” नताशा ने कहा. “और अगर मेने ऐसा कुछ देखने की माँग रख दी जिससे दो कपड़े उतारने पड़े तो?” मेने पूछा.

 “तो तुम अपना चान्स खो दोगे और में कुछ भी नही उतारुँगी.” उसने जवाब दिया. “ठीक है खेल कर देखते है, पर ये कैसे पता चलेगा कि कौन जीता.” मैने पूछा. “उसकी किसको परवाह है. असली मज़ा तो खेल का है.” उसने कहा, “तुम्हे पक्का विश्वास है ना यहाँ कोई नही आएगा.” “किसी के आने की कोई संभावना नही है. मेने दरवाज़ा अंदर से लॉक कर दिया है.” मेने कहा, “हां हमे सिर्फ़ इतना करना है कि अपनी आवाज़ थोड़ी धीमी रखनी पड़ेगी जिससे किसी को ये ना पता चले कि हम अंदर क्या कर रहे है.” “ठीक है तो फिर तुम इस खेल की शुरुआत करो.” नताशा ने मुझसे कहा. “ठीक है. में तुम्हारा .पेट देखना चाहता हूँ.” मेने सोचा इसके लिए उसे अपनी कमीज़ उतारनी पड़ेगी. वो खड़ी हो गयी और अपने हाथों को चौकर कर कमीज़ को नीचे से पकड़ा और फिर धीरे से उपर कर उतार दिया.

मुझे पता था कि उसका पतला और गोरा बदन काफ़ी दिलचस्प है पर कमीज़ उतारते हुए उसके बदन की गोलियाँ ग़ज़ब ही ढा रही थी. उसके भरे भरे ममे गुलाबी रंग की ब्रा में क़ैद थे. उसके निपल भी तने हुए थे पतली ब्रा से बाहर की ओर उठे हुए थे. उसने अपनी कमीज़ समेटी और सीट के कोने पर रख दी, “अब मेरी बारी, में तुम्हारी छाती देखना चाहती हूँ.” नताशा ने कहा. में खड़ा हुआ और अपना पूरा समय लेते हुए अपनी शर्ट के बटन खोलने लगा. शर्ट उतार कर में दरवाज़े पर बनी खूंती पर टांग दी. में वापस सीट पर बैठ गया और कहा, “अब मेरी बारी है ..ह्म मुझे अपनी प्यारी प्यारी चुचियाँ दिखाओ.” उसने आगे से खुलने वाली ब्रा पहन रखी थी.

नताशा धीरे से मुस्कुराइ और अपनी ब्रा का हुक खोल दिया. ब्रा खुल तो गयी पर उसकी आधे से ज़्यादा चुचि ब्रा से ही धकि हुई थी. सिर्फ़ उसकी चुचियों की बीच की दरार ही दिखाई दे रही थी यहाँ तक की उसके निपल भी ढके हुए थे. “ठीक है?” उसने पूछा. “उतनी सफाई से नही दिखाई दे रही जितनी अछी तरह से दिखनी चाहिए. तुम्हारे चुचियाँ तो अभी भी धकि हुई है.” मैने कहा. “ह्म्‍म्म्मम मुझे तो लगता है काफ़ी अछी तरह दिखाई दे रही है. एक दम खुली तो है, या फिर में समझ नही पाई कि तुम कैसे देखना चाहते हो? क्या तुम उतार कर दिखा सकते हो?” में उसकी तरफ झुका और और उसके ब्रा के दोनो स्ट्रॅप कंधों पर से उतार दिया.

नताशा ने अपने हाथ उठाए स्ट्रॅप से बाहर निकाले जिससे उसकी ब्रा खुल कर गिर पड़ी. उसके निपल इतने तीखे थे और तन कर पूरी तरह से खड़े थे, “एम्म्म कितनी प्यारी चुचियाँ है तुम्हारी.” मैने धीरे से कहा. “क्या आप इन्हे चूसना चाहते है?” उसने अपनी ब्रा को कमीज़ पर फैंकते हुए कहा. “ये भी कोई पूछने की बात है.” मेने अपना हाथ उसकी बाई चुचि की तरफ बढ़ाते हुए कहा. “इतनी जल्दी नही.” उसने मेरे माथे पर एक उंगली रखी और मुझे रोकते हुए कहा, “हमे अभी इस खेल को पूरा करना है. में तो बस पूछ रही थी.” “अर्रे हां, खेल अभी बाकी है.” मुझे अहसास हुआ कि उसे मुझे चिढ़ाने में मज़ा आता है. “मुझे लगता है कि में तुम्हारी टाँगे देखना चाहूँगी?”

नताशा ने कहा. में खड़ा हुआ और अपने पयज़ामा का नाडा खींच दिया, और धीरे से उसे नीचे कर दिया. मेने अपनी चप्पल पहन रखी थी, “जानू लगता है तुम अपना चान्स खो चुकी है. पयज़ामा उतारने के लिए मुझे अपनी चप्पल उतारनी पड़ेगी. और तुमने कहा था कि अगर दो चीज़े उतारनी पड़ती है तो चान्स चला जाता है.” मेने कहा. “मेने सिर्फ़ कपड़े के बारे में कहा था, चप्पल जूते इसमे नही आते.” उसने जल्दी से कहा, “सिर्फ़ कपड़े” लगता था कि वो काफ़ी जल्दी में है. मेने अपना पयज़ामा उतार दिया, “ठीक है ये लो मेरी टाँगे देख लो.” “हां.टाँगे.” उसने अपने होठों पर जीब फिराते हुए कहा. मेने देखा कि उसका ध्यान मेरी टाँगो में कम और मेरे चढ्ढि से उभरते मेरे खड़े हुए लंड पर ज़्यादा था. “काफ़ी अच्छी है.” उसने धीरे से कहा. “अब मेरी बारी है.” मेने बैठते हुए कहा, “अब में तुम्हारी गांद देखना चाहूँगा.” “हा! तुम अपना चान्स खो चुके हो.

में तुम्हे अपनी गांड नही दिखा सकती क्यों कि गांड दिखाने के लिए मुझे अपनी पॅंटी उतारनी होगी. और में पॅंटी नही उतार सकती जब तक तुम ऐसा कुछ देखने को ना माँगो जिससे मुझे सलवार उतारनी पड़े.” उसने हंसते हुए कहा. “अब में तुम्हारा सुन्दर और खड़ा हुआ लंड देखना चाहूँगी.” “मुझे नही पता था कि तुमने फिर से अपनी पॅंटी पहन ली है.” में खड़ा होते हुए नाराजगी भरे स्वर में बोला. “घर से चलते हुए मेने उतार दी थी जिससे तुम मेरे बारे में सेक्सी फील करो. पर बाथरूम में जब इस खेल के बारे में सोचा तो फिर से पहन ली. मेने तुम्हे थोड़ा चिढ़ाना चाहती थी.” नताशा ने कहा. मेने अपनी चड्डी उतार दी जिससे मेरा लंड आज़ाद होते ही अकड़ कर खड़ा हो गया. “ये लो देख लो.” मेने नताशा के सामने नंगे खड़े होते हुए कहा. “नताशा मुझे लगता है में ये खेल हार गया हूँ.

अब क्या करना है.” नताशा ने मेरे लंड को घूरते हुए कहा, “हां आप हर गये हो, और हां में एक नियम बताना भूल गयी कि हारे हुए व्यक्ति को जीते हुए के कपड़े उतारने पड़ते है.” “मुझे ये नियम बहुत पसंद आया है. अब खड़ी हो जाओ जिससे मैं तुम्हारे कपड़े उतार सकूँ.” नताशा खड़ी हो गयी और मुझे से सॅट गयी. मेने उसे बाहों में भरा और अपने और नज़दीक कर लिया. जैसे ही उसकी चुचियाँ और खड़े निपल मेरी छाती में धसे उसने अपना मुँह खोल दिया. में अपनी जीब उसके मुँह मे डाल घुमाने लगा. “आपको तो मेरे कपड़े उतारने थे.” वो धीरे से बड़बड़ाती हुई बोली और अपनी बाहें मेरी गर्दन में डाल दी. मेने उसकी बात पर ध्यान नही दिया और अपनी हाथों को उसकी पीठ पर रैन्ग्ते हुए मेने आगे से उसकी सलवार पर रख दिया. में उसके सलवार के कमरबन्द पर हाथ रख सलवार का नाडा ढूँडने लगा जो उसने सलवार के अंदर दबा रखा था. नताशा ने मेरी मदद करते हुए अपना नडे की डोर बाहर निकाली और मेरे हाथों में पकड़ा दी. मेने डोर खींच दी जिससे उसकी सलवार ढीली पड़ गयी. मेने एक हाथ से उसे अपने से और सताया और अपनी जीब का खेल उसके मुँह मे जारी रखते हुए अपना हाथ उसकी ढीली पड़ी सलवार में डाल दिया. मेने अपना हाथ उसकी पॅंटी से ढके चुतडो पर रख सहलाने लगा.

नताशा ने अपनी टाँगे चौड़ी की जिससे सलवार खिसक कर नीचे हो गयी. कैलाशप्लीज़ अपने दांतो से पकड़ मेरी पॅंटी उतारो.” नताशा मुझसे गिड़गिदाते हुए बोली. “मेने किताबो मे पढ़ा है कि ऐसा करने में बहुत मज़ा आता है.” “कहने को तो आसान काम लगता है पर बहुत मूसखिल काम है. फिर भी में कोशिश करूँगा.” कहकर में नीचे बैठता गया. नीचे होते हुए मेने पहले मेने उसकी गर्दन को चूमा, फिर उसकी चुचियो की दरार में अपनी जीभ फिराई, फिर उसकी चुचियों को चूमा, निपल को अपने होठों में लिए थोड़ा सा काट लिया फिर उसके पेट को चूमते हुए उसकी नाभि में अपनी जीब फिरा दी. अब मेरा मुँह उसके पॅंटी के एलास्टिक पर था. मेने अपने दोनो हाथ उसके चूतड़ पर रखे और उसे अपने और नज़दीक खींच लिया. उसकी पॅंटी सिल्की और सामने से लो कट की थी. नताशा की पॅंटी इतनी महीन थी कि उसकी चूत और उसके आस पास उगी उसकी झटें सॉफ दिखाई दे रही. दांतो से पॅंटी को उतारना आसान तो नही था पर मुश्किल भी नही था. मेने उसके चूतड़ को पकड़ उसकी कमर की तरफ से उसकी पॅंटी के इलास्टिक को अपने दांतो में दबा नीचे कर दिया. फिर उसे दूसरी तरफ घुमा कमर के दूसरी तरफ से नीचे कर दिया. पर उसकी पॅंटी का एलास्टिक इतना मजबूत था कि अब भी उसकी टॅंगो के जाकड़ रखा था. “कितना अच्छा लग रहा है कैलाश!” नताशा ने मेरे बालों में उंगली फिराते हुए कहा. “हाँ तुम्हारा बदन काफ़ी सुन्दर है.” “शुक्रिया.” अब मेने नताशा को घुमा उसके कुल्हों पर से पॅंटी को दांतो में पकड़ा और नीचे तक खिचता चला गया. उसके कूल्हे नंगे हो गये थे. मेने उन्हे चूम लिया और अपनी ज़ुबान फिराने लगा. “ये क्या कर रहो हो? गुदगुदी होती है ना…….

कहानी जारी है……… आगे की कहानी part – 3

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